नाम तुम्हारा था, रूह मेरी थी…..

 

हाँ ,
कविता , नज्म , शायरी , ग़ज़ल
यूं ही जन्म नहीं लेती
रूह के गर्भ में पलती और पनपती है
दिल और नसों में जब जज्बात
उबाल बन उफान तक जा पहुंचे
तब,
शब्द बन जन्म लेती है
कविता , नज्म , शायरी , ग़ज़ल
नाम अलग हो सकते हैं
रूप और आकार अलग हो सकते हैं
लेकिन हैं भावनाएं ही !
बिलकुल तुम्हारे नाम की तरह

कभी देखा हैं तुमने मुझे “तुम्हारा नाम” पुकारते हुए ?
गुनगुनाते हुए ?

“हर शाम जब जब तुम न थी
नाम तुम्हारा था, रूह मेरी थी !!”

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